कृतिका...... शोधपरक पत्रिका
पत्रिका-कृतिका अंक-जुलाई-दिसम्बर08, स्वरूप-अर्द्धवार्षिक, प्रधान संपादक-डाॅ। चन्द्रमा सिंह, संपादक-डाॅ. वीरेन्द्र सिंह यादव, संपर्क-1760, नया रामनगर, उरई, जालौन 285.001 (उ.प्र.) भारत
इंटीग्रेटेड सेन्टर फाॅर वल्र्ड स्टडीज, उरई जालौन उ.प्र. का यह शोध परक अर्द्धवार्षिक पत्र है। पत्रिका में साहित्य, कला, संस्कृति, आयुर्वेद, मानविकी, एवं समाज विज्ञान की शोधपरक रचनाएं प्रकाशित की जाती हैं। इस अंक में भाषा एवं साहित्य पर दो रचनाएं (प्रोफेसर राम चैधरी, डाॅ. तिलक राज), धरोहर के अंतर्गत तीन रचनाएं (डाॅ. किशन यादव, डाॅ. दिवस कांत समाथिया, ज्योति श्रीवास्तव), आध्यात्म एवं दर्शन के अंतर्गत डाॅ. अनिल कुमार सिन्हा का आलेख प्रकाशित किया गया है। आधी दुनिया का यथार्थ (डाॅ शुभा चैधरी, डाॅ. चम्पा श्रीवास्तव, डाॅ. जार्ज कुट्टी, चित्रा आम्रवंशी, आकांक्षा यादव), संगीत के अंतर्गत डाॅ. ज्योति सिन्हा की शोध परक रचनाएं प्रभावित करती हैं। संवाद के अतर्गत डाॅ. लक्ष्मी सिंह यादव तथा निरूत्तर के अंतर्गत डाॅ. महालक्ष्मी जौहरी की रचनाएं शोध परक रचनाओं की कसौटी पर कुछ पीछे दिखाई देती हैं। नागरिक समाज में डाॅ. अजय सिंह एवं डाॅ. वीरेन्द्र सिंह यादव का दृष्टिकोण नितांत शोधपरक है जो विषय वस्तु का प्रतिपादन करने में पूरी तरह सक्षम है। लोक साहित्य में हसीन खान, अमृता पीर, ममता यादव में से भोजपुरी कला पर अमृता पीर द्वारा लिखा गया शोधालेख विशेष प्रभावित करता है। इतिहास के अंतर्गत डाॅ. उमारतन, डाॅ. शंकरलाल, कु. अनीता सिंह के शोधपत्र अच्छे बन पड़े हैं। समकालीन सृजन के अंतर्गत डाॅ. राधा वर्मा एवं डाॅ. सुरेश फाकिर में मौलिकता की गंध है। लीला चैहान एवं शम्स आलम में से लीला को शेखर एक जीवन पर पुनः विचार कर इस शोध को फिर से लिखना चाहिए क्योंकि अभी इसमें वह धार नहीं आ पाई है जो शेखर इस उपन्यास के प्रमुख बिंदुओं को उभार सके। डाॅ. चन्द्रमा सिंह तो आलोचना का विश्लेषण बहुत ही अच्छी तरह कर पाए हैं लेकिन क्रांतिबोध को और भी अधिक अध्ययन कर अपना शोध प्रस्तुत करना चाहिए था। सुलगते सवाल, बीच बहस में तथा शोधार्थी के अंतर्गत ली गई रचनाएं भी उच्च कोटि की व प्रभावशाली है। यदि आप गंभीर शोध परक साहित्य पढ़ना चाहते हैं तो यह पत्रिका आप ही के लिए है।
Posted by अखिलेश शुक्ल at 6:11 AM 0 comments
Tuesday, January 27, 2009
Saturday, January 31, 2009
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