Sunday, July 12, 2009
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यज्ञों का महत्व एवं उपयोगिता
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यज्ञों का महत्व एवं उपयोगिता
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डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव
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भारतीय जनमानस में ऐतिहासिक एवं पौराणिककाल से यज्ञों का अपना विशिष्ट उपयोग एवं महत्व रहा है। हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति में यज्ञसें का हर समय उपयोग किया जाता था अर्थात् हमारी संस्कृति अतीत में यज्ञमय प्रतीत होती है। पौराणिक ब्राह्यण ग्रन्थों में तो यज्ञ का सम्पूर्ण साम्राज्य ही दिखता प्रतीत होता है। यही कारण है कि शतपथ ब्राह्यण में स्पष्ट रूप से लिखित है "यज्ञोवैश्रेष्ठतमं कर्म" अर्थात् समस्त कर्मों में से यज्ञ श्रेष्ठ कर्म है। जहाँ एक ओर ब्राह्यण ग्रन्थ यज्ञ की इतनी विशेषताएं एवं महिमा समझते है जिनका मानना है कि वह ब्रह्या को ही यज्ञ स्वरूप् बताते है। हमारे जगत में जो कुछ सामान्यरूप् से दिखता है वह यज्ञों का ही प्रत्यक्ष रूप् अवलोकित होता है वहीं दूसरे शब्दों में कहें तो यज्ञ ही प्रजापति हे, वहीं दूसरी तरफ यज्ञ शब्द परमात्मा की उपासना और मनुष्य की त्याग भावना का साक्षत प्रतीक बन गया है क्योंकि इनका सर्वांगपूर्ण विवेचन वंदों तथा ग्रहसूत्रों की सहायता से भी प्राप्त होता है।
भारतीय जीवन में यज्ञों द्वारा ही मनुष्य समाज और विभिन्न समूहों की उत्पत्ति हुई, इसके साथ ही यज्ञों द्वारा मनुष्य केवल अपने ही जीवन के अभिप्राय के ही पूर्ति नही करता वरन् सम्पूर्ण जनमानस में अनेक रूपों का समन्वय करता हुआ उसकी एकता संरक्षण एवं सुरक्षा साक्षात्कार करता है। शतपत ब्राह्यण में यज्ञ को प्रजापति माना गया है "एष वै प्रत्यक्षं यज्ञो यत्प्रजापतिः" अर्थात यह प्रजापति ही यज्ञ है संसार में जड़ जगत में जो भी यज्ञ हो रहे है , सूर्य उसका केन्द्र है अर्थात् जो यह वह यही सूर्य है इसी महायज्ञ का चित्र मानव इस वसुन्धरा पर बनाता है। वास्तव में देखा जाये तो वसुन्धरा की वेदी पर यज्ञ हो मुख्य केन्द्र बिन्दु है क्योंकि अग्नि देवताओं में प्रथम है और सूर्य अन्तिम। इसे विस्तारित रूप् से परिभाषित करें तो यह कहा जा सकता है कि वेदसें में जो अग्नि दिखती है उसे ही हावि के रूप् में जाना जाता है! वास्तव में देखा जाए तो यज्ञ केवल पदार्थों को ही शुद्ध नहीं करता बल्कि इन पदार्थों , पर्यावरण तथा सकल जगत को शुद्ध करता हुआ मनुष्य मात्र का कल्याण करता है। यज्ञों के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से दो तरह के लाभ दिखाई देते है। प्रथम के तहत यज्ञ कत्र्ता को सृष्टि नियम का ज्ञान साक्षात एवं समान रूप से होता प्रतीत होता है। दूसरे के तहत सृष्टि नियम में यह यज्ञ परोक्ष रूप् से मदद करते है। जिस तरह से सूर्य अपने बल से इस संसार की दुर्गन्धि को दूर करता है , और जल को पवित्र करता है। उसी तरह से मानव द्वारा किए गये अग्निहोत्र भी दोनो काम करते है।
भूमण्डलीकरण एवं ग्लोबल वार्मिंग के इस युग में आज यज्ञों का महत्व इसलिए अधिक बढ़ गया है क्योंकि यज्ञों के द्वारा दी गई आहुति वायु के माध्यम से सूर्य की ओर अर्थात् ऊपर (वायुमण्डल) की ओर जाती है। यह सामग्री ऊपर जाकर सम्पूर्ण अन्तरिक्ष में फैल जाती है। अन्तरिक्ष में फैले प्रदूषण को यह समाप्त कर सूर्य के प्रभाव से मेघमण्डल के साथ वह छवि नीचे उतरती है और सभी मानव , प्शु,पक्षियों एवं पर्यावरण को तृप्त कर पवित्र बनाती है उसकी यह आहुति हवा (वायु) के साथ देश-देशान्तर को शुद्ध करती हुई अपनी अपहिश दुर्गधि आदि के दोषों को निर्धारित करती हुई सम्पूर्ण जगत के प्राणियों को सुख प्रदान करती है। इसमे कोई दो राय नहीं (कर्मकाण्ड एवं पुजा पाठ को छोड़कर देखें तो) यज्ञ के द्वारा पृथ्वी के पदार्थ एवं अन्तरिक्ष शुद्ध होता है साथ ही सूर्य की किरणें भी पवित्र होती हैं। वास्तव में देखे तो यज्ञ इन पदार्थों को ही शुद्ध नहीं करता बल्कि मनुष्य सहित समूह सम्पूर्ण प्राणी जगत का मानसिक रूप से सबलकर कल्याण भी करते हैं।
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सम्पर्क-
वरिष्ठ प्रवक्ता हिन्दी विभाग
डी0 वी0 महाविद्यालय , उरई (जालौन) उ0 प्र0 -285001
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डॉ० वीरेन्द्र सिंह यादव का परिचय यहाँ देखें।
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Good informations.Aapne yagya aur global warming me relation sthapit kar paryavaran ki raksha ka upaya sujhaya hai. Go ahead.
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