Sunday, July 12, 2009

शिक्षा में भारतीय मुसलमानों की दशा एवं दिशा


June 30, 2009
वीरेन्‍द्र सिंह यादव का आलेख : शिक्षा में भारतीय मुसलमानों की दशा एवं दिशा




शिक्षा में भारतीय मुसलमानों की दशा एवं दिशा

डॉ0 वीरेन्‍द्र सिंह यादव



किसी भी सम्‍प्रदाय के विकास में शिक्षा की अहम भूमिका होती है क्‍योंकि शिक्षा व्‍यक्‍ति को सुसंस्‍कृत एवं सभ्‍य बनाकर एक सुन्‍दर, मनोहर आदर्श समाज का सृजन करती है। सच्‍ची शिक्षा व्‍यक्‍ति को निर्माण की प्रक्रिया की ओर प्रेरित कर उसमें व्‍यवहार के परिष्‍कार, दृष्‍टिकोण को तो विकसित करती ही है साथ ही व्‍यक्‍ति के चरित्र का निर्माण और व्‍यवहार का निरूपण भी करती है। शिक्षा संविधान, प्रतिष्‍ठान, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र के आदर्श मूल्‍यों की प्राप्‍ति में मार्ग दर्शन कर सहायता करती है। अर्थात्‌ बौद्धिक सम्‍पन्‍नता एवं राष्‍ट्रीय आत्‍म निर्भरता की जड़ शिक्षा है। शिक्षा वास्‍तविक मायनों में प्रवृत्‍ति और आन्‍तरिक शोध की प्रक्रिया में प्रत्‍यक्ष सुधार उत्‍पन्‍न करती है। शिक्षा मानव को अधिक तार्किक और उदार बनाती है और पढ़ा लिखा व्‍यक्‍ति अपनी धार्मिक पहचान के प्रति संकुचित दृष्‍टिकोण नहीं रखता। यदि व्‍यक्‍ति या समुदाय को उचित ढ़ंग से शिक्षित किया जाये तो प्रत्‍येक नागरिक एकता की क्षमता को विकसित करता है जिसका परिणाम एक शक्‍तिशाली राष्‍ट्र के रूप में सामने आता है। वास्‍तविकता यह है कि व्‍यक्‍ति और किसी भी समुदाय के चतुर्मुखी विकास के लिए शिक्षा एक अति महत्‍वपूर्ण घटक के रूप में कार्य करती है।

दुनिया का सबसे शक्‍तिशाली लोकतंत्र अपनी अनेक ख़ामियों के बावजूद विश्‍व में सदैव आकर्षण का केन्‍द्र रहा है, क्‍योंकि इसने (भारत) समाज के हाशिए पर पड़े समूहों समेत विभिन्‍न वर्गों वाली शक्‍तियों को जीवंत/संजीदा और मजबूत किया है। अंतर-लोकतंत्रीकरण (समाज में समान दर्जे की अनुभूति) एवं लोकतंत्रीकरण (सामाजिक और श्‍ौक्षिक स्थिति में सुधार) की इस प्रकिया ने दलितों, पिछड़ों एवं महिलाओं में नयी जान डाल दी है परन्‍तु इस प्रक्रिया नें भारतीय मुसलमानों को खास प्रभावित नहीं किया है क्‍योंकि मुस्‍लिम समुदाय के अंदर जितनी व्‍यापक सामाजिक और श्‍ौक्षिक सुधार की पहल होनी चाहिए वह नहीं हो पा रही है। भारतीय संविधान पर दृष्‍टि डालें तो यह धर्म-निरपेक्षता की स्‍पष्‍ट घोषणा करता है। अर्थात्‌ ऐसा राष्‍ट्र जिसका अपना कोई मजहब नहीं होता और वह किसी समुदाय के साथ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। भारतीय संविधान का अनुच्‍छेद 25 प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति को लोक व्‍यवस्‍था एवं स्‍वास्‍थ्‍य तथा नैतिकता के अधीन रहते हुए केवल ऐसा धर्म ग्रहण करने की स्‍वतंत्रता नहीं देता, बल्‍कि अपने विचारों का प्रचार व प्रसार करने के लिए अपने विश्‍वास को ऐसे बाहरी कार्यों में भी प्रदर्शित करने की स्‍वतंत्रता देता है। जैसा कि वह व्‍यक्‍ति उचित समझता है साथ ही उसके निर्णय एवं अन्‍तःकरण द्वारा अनुमोदित हो। धर्म की स्‍वतंत्रता पर राज्‍य द्वारा कतिपय पाबन्‍दी लगाने की व्‍यवस्‍था भी संविधान में है। भारतीय संविधान का अनुच्‍छेद-30 अल्‍पसंख्‍यक वर्गों को अपनी पसंद की श्‍ौक्षिक संस्‍थानों को स्‍थापित करने और प्रबन्‍ध करने का अधिकार देता है। यहाँ अल्‍पसंख्‍यक से तात्‍पर्य मुस्‍लिम, सिख, बौद्ध, ईसाई तथा फारसी समुदायों से है।

भारतीय मुसलमान शिक्षा में देश के अन्‍य समूहों से बहुत पीछे हैं यह एक स्‍थापित सत्‍य है। और इसके पीछे मुसलमानों का पिछड़ापन बताया जाता है यहाँ यक्ष प्रश्‍न यह है कि मुस्‍लिम समुदाय का आर्थिक रूप से पिछड़ापन होना, उनके श्‍ौक्षिक पिछड़े पन के लिए जिम्‍मेदार है या यूं कहा जाये कि शिक्षा में पीछे होने के कारण ही ये आर्थिक व सामाजिक रूप से पीछे रह जाते हैं। कुल मिलाकर मुस्‍लिम समुदाय की स्थिति भारत में श्‍ौक्षिक स्‍तर पर दयनीय है। मुस्‍लिम समुदाय की इस दशा को रेखांकित करने के लिए हमें कुछ वर्ष पीछे जाना पड़ेगा। देखा जाये तो वास्‍तव में देश विभाजन एवं देश की स्‍वाधीनता हमें दोनों एक साथ प्राप्‍त हुई। जहाँ एक ओर हम देश की स्‍वतंत्रता से प्रफुल्‍लित थे वहीं दूसरी तरफ हम देश के विभाजन से दुःखी भी थे। विश्‍ोषकर जिसमें मुस्‍लिम समुदाय को साम्‍प्रदायिक हिंसा का शिकार होना पड़ा। जिनके पास जो सम्‍पत्‍ति थी उसे या तो उनको वहीं छोड़ना पड़ा था और ऐसी स्थिति में पाकिस्‍तान भी जाना पड़ा। अर्थात्‌ अधिकतर मुस्‍लिम समुदाय के लोगों को शरणार्थी के रूप में यहाँ रहना पड़ा। स्‍वतंत्रता पश्‍चात मुसलमानों का लखनऊ में मौलाना अबुल कलाम आजाद की पहल पर एक अधिवेशन हुआ इसके द्वारा तय किया गया कि मुसलमान अपना कोई स्‍वतंत्र राजनीतिक दल नहीं बनायेंगे और इसमें उन्‍हें काफी हद तक सफलता भी मिली, लेकिन मुस्‍लिम समुदाय की यह समस्‍या बनी रही कि भारतीय राष्‍ट्रीयता से जुड़ जाने के बाद भी साम्‍प्रदायिक दंगो से परेशान रहे, मुस्‍लिम समुदाय की वह पीढ़ी, जो भारत में 1947 के आसपास पैदा हुई थी, छठवें दशक तक आते-आते युवा हो गयी तब भी ये राजनीति की धारा में अलग-थलग बनें रहे। प्रारम्‍भ में कांग्रेस का दामन थामने पर इस समुदाय की बहुत ठोस जगह मुकम्‍मल नहीं हो पायी। पाकिस्‍तान के साथ बढ़ती शत्रुता और युद्धों ने साम्‍प्रदायिकता को बढ़ावा दिया। कांग्रेस के पास मुद्दों का अभाव होने की वजह से उसने अपने वोट बैंक खिसकने की वजह से धर्म का सहारा लिया। वामपंथी एवं किसान, संगठन की मूलधारा से न जुड़ने से साम्‍प्रदायिकता को बल मिला। फलतः मुस्‍लिम समुदाय में जो सामाजिक, सांस्‍कृतिक, श्‍ौक्षिक विकास होना चाहिए था वह नहीं हो पाया और इसके परिणाम स्‍वरूप धर्मांध मुस्‍लिम नेताओं की एक नयी जमात तैयार हो गयी, क्‍योंकि जहाँ हिन्‍दुओं की शक्‍तियां एक होकर संस्‍थायें बना रही थीं (विश्‍व हिन्‍दू परिषद, बजरंग दल, शिवसेना, भाजपा), वहीं मुस्‍लिम समुदाय के भी धार्मिक संगठन बनाये जा रहे थे। साम्प्रदायिक घृणा की यह दीवार दिनों-दिन बढ़ती गयी फलतः श्‍ौक्षिक विकास जो इस वर्ग में होना चाहिए वह नहीं हो पाया। हालाँकि इसके लिए कुछ मुस्‍लिम भाई भारतीय समाज को दोषी ठहराते हैं कि हिन्‍दू समाज मुस्‍लिम समुदाय की अपेक्षा अधिक कट्टर है। परन्‍तु भारत एवं विश्‍व सहित अनेक शोध रिपोर्टों से यह साबित होता है कि ‘भारतीय समाज किसी भी देश के समाज से अधिक उन्‍नत समाज है इसलिए आप एक पिछड़े समाज की तुलना किसी उन्‍नत समाज से नहीं कर सकते और यह नहीं कह सकते कि पिछड़े समाज के मूल्‍य उन्‍नत समाज पर थोप दिये जायें।' लोगों के मस्‍तिष्‍क में चाहे जो पूर्वाग्रह हों परन्‍तु स्‍वतंत्रता के पश्‍चात भारत में मुस्‍लिम समुदाय को बहुत सी ऐसी स्‍वतंत्रताएं हासिल हैं। जो अन्‍य मुस्‍लिम देशों में उन्‍हें कहीं नहीं मिलती हैं। धर्मनिरपेक्ष, व्‍यवस्‍था चाहे कितनी ही दोषपूर्ण, लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था चाहे जितनी ही गैर प्रतिनिधिक हो, भारत के मुस्‍लिम समुदाय को जो खास सहूलियतें मिली हुई हैं, वे बहुत से मुसलमानों ,यहाँ तक कि इस्‍लामी राष्ट्रों को भी हासिल नहीं हैं, उदाहरण के लिए अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता, संगठन और राजनैतिक प्रक्रिया में हिस्‍सेदारी की स्‍वतंत्रता। हालांकि ऐतिहासिक कारणों से उन्‍हें साम्‍प्रदायिक पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है जो बराबर मुस्‍लिम समुदाय को तनाव/अवसाद में डालें रखता है और कभी-कभी इसका इतना विकराल/विस्‍फोटक रूप हो जाता है कि उसका वर्णन नहीं किया जाता है। वास्‍तविकता यह है कि मुसलमानों ने जिंदगी, सम्‍पत्‍ति और सम्‍मान की क्षति झेली है, कुछ त्रासदी पूर्व भयानक घटनाओं ने आम लोगों के मस्‍तिष्‍क पर बहुत गहरे घाव छोड़े हैं, पर इतना क्‍या कम है कि मुसलमान अपने अस्‍तित्व में बने रहे और बढ़ते रहे। कुल मिलाकर यह मुस्‍लिम समुदाय आजादी और क्षति के साथ जीता रहा, पर एक बात है जैसा न्‍याय, अधिकार एवं बराबरी एवं शिक्षा इस समुदाय को मिलनी चाहिए। वह मुसलमानों को आज भी मुकम्‍मल नहीं हो पायी हैं। इसलिए इनका श्‍ौक्षिक स्‍तर अधिक नहीं बढ़ पाया है।

भारतीय मुसलमानों का श्‍ौक्षिक स्‍तर कम होने का दूसरा पहलू इनका रहन-सहन का वातावरण भी है। भारतीय मुसलमानों का रहन-सहन अपनी विशिष्‍ट पहचान रखता है और इसी पहचान के लिए इस समुदाय का श्‍ौक्षिक वातावरण (तालीमी) भी अलग रहा है। इतिहास से हमें ज्ञात होता है कि मदरसों ने मुस्‍लिम समुदाय को साक्षरता के क्षेत्र में अति महत्‍वपूर्ण मुकाम पर पहुंचाया है। सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह है कि मदरसे उन क्षेत्रों में छात्रों को साक्षर बनाते हैं, जहाँ औपचारिक शिक्षण संस्‍थाएं नहीं हैं शायद इसके पीछे यह कारण भी महत्‍वपूर्ण हो सकता है कि इन क्षेत्रों के लोगों की आर्थिक स्‍थिति इतनी बेहतर नहीं है कि अच्‍छे स्‍कूलों में जाकर अध्‍ययन कर सकें इससे स्‍पष्‍ट है कि एक तो गरीबी में अधिक से अधिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार मदरसों ने किया साथ ही दूर -दराज तक साक्षरता का मिशन भी पूरा किया, परन्‍तु आज सैकड़ों साल पुरानी विशिष्‍ट मदरसा शिक्षा की भव्‍य इमारतों की शानदार (सुनहरी) यात्रा कर आये मदरसों को जहाँ एक खास विचारधारा के लोग आतंकवाद या धार्मिक उग्रवाद का उत्‍पादन केन्‍द्र घोषित कर रहे हैं इसके साथ ही एक धारणा यह भी जोड़ दी जाती है कि मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा बच्‍चों , किशोरों को धर्मांध, रूढ़िवादी , प्रचीनतावादी तथा आधुनिकता का विरोधी बनाने का काम करती है। इधर कुछ वर्षों में मदरसों के पाठ्‌यक्रम और शिक्षा पद्धति को लेकर भारत में बहुत सार्थक और उपयोगी काम हुए हैं। यहाँ पर कम्‍प्‍यूटर की शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी एवं व्‍यावसायिक शिक्षा भी दी जा रही है इसके लिए उ0 प्र0 सरकार के अरबी-फारसी परीक्षा बोर्ड ने मान्‍यता दे दी है।

मदरसा शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ वर्तमान में मुस्‍लिम नवजवान शिक्षा की सभी संस्‍थाओं में अपने आपको अध्‍ययन के लिए उत्‍सुक हैं। आज मुस्‍लिम समुदाय के समक्ष जीविकोपार्जन एक चुनौती के रूप में है इसके लिए इनके समक्ष अब नैतिकता बौनी हो गयी है अर्थात्‌ नैतिक शिक्षा का बल कम हो गया है। उ0 प्र0 में मकातबे इस्‍लामियाँ, शिक्षा को आधुनिकता का मोड़ देकर अति महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रही है। अर्थात्‌ स्‍पष्‍ट है कि भारत में अरबी के मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सेक्‍यूलर शिक्षा पर भी जोर (अनिवार्यता) दिया जा रहा है।

भारत में मुस्‍लिम समुदाय उच्‍च शिक्षा में उतना आगे नहीं है जितना होना चाहिए परन्‍तु इसके लिए भारत सरकार अपने स्‍तर से पूरी छूट दिये हुए है। अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय इस दिशा में एक महत्‍वपूर्ण काम कर रहा है और शिक्षा की जितनी आधुनिक प्रणालियाँ हैं वह सब यहाँ उपलब्‍ध हैं। सबसे अहम बात मुस्‍लिम समुदाय के लिए यह है कि इस वर्ग की महिलाएं शिक्षा एवं रोजगार के क्षेत्र में किसी भी वर्ग से बहुत पीछे हैं, फिलहाल कुछ भी हो आज स्‍कूली शिक्षा (मदरसा) के साथ-साथ मुस्‍लिम समुदाय को अपने नौनिहालों को माध्‍यमिक शिक्षा एवं उच्‍च शिक्षा को बढ़ाने की जरूरत है। सर सैय्‍यद अहमद साहब के अलीगढ़ मूवमेंट से लेकर अभी तक तमाम श्‍ौक्षिक सुधार अभियानों के पीछे (सच्‍चर समिति की रिपोर्ट को छोड़कर)बहुत सीमित मंशा काम करती रही है। इससे सबको शिक्षित करने का सवाल नहीं होता यह सामाजिक रूप से मौजूद बुराइयों को मजबूत करने वाला है और सिर्फ मुस्‍लिम कुलीन जमात की जरूरत को पूरा करने के ख्‍याल से चलाये जाते हैं। इसके लिए आज आवश्‍यकता है कि सरकार मुस्‍लिम समुदाय के लिए अन्‍य वर्गों की भाँति ( अनु0 जाति-अनु0 जनजाति/पिछड़े वर्ग) ठोस श्‍ौक्षिक नीति बनाएँ जिसमें मुस्‍लिमों के लिए शिक्षा पर विश्‍ोष बल दिये जाने की बात हो। जिससे प्राथमिक एवं माध्‍यमिक तथा उच्‍च शिक्षा के साथ-साथ व्‍यावसायिक शिक्षा के महत्‍व पर बल दिया जाये इसके साथ ही मुस्‍लिम बच्‍चों को विश्‍ोष रूप से ट्रेनिंग एवं कोचिंग की व्‍यवस्‍था पर भी जोर दिया जाये।

यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि मुस्‍लिम समुदाय के शिक्षा में पिछड़ने के पहलुओं पर पिछली एवम्‌ वर्तमान सरकार की गलत नीतियों के साथ-साथ मुस्‍लिम समुदाय की रूढ़ियां एवं आर्थिक पिछड़ापन भी कम दोषी नहीं हैं। आज वास्‍तविकता यह है कि मुस्‍लिम समुदाय इनके भंवर जाल के रूप में फंस गया है जिससे वह आज तक नहीं निकल पाया है फिलहाल आज के इस गलाकाट प्रतिस्‍पर्धा वाले युग में मुसलमान अपने को कितना आगे (श्‍ौक्षिक स्‍तर पर) ले जायेंगे यह भविष्‍य के गर्भ में छिपा हुआ है?

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श्‍ौक्षणिक गतिविधियों से जुड़े युवा साहित्‍यकार डाँ वीरेन्‍द्रसिंह यादव ने साहित्‍यिक, सांस्‍कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा पर्यावर्णीय समस्‍याओं से सम्‍बन्‍धित गतिविधियों को केन्‍द्र में रखकर अपना सृजन किया है। इसके साथ ही आपने दलित विमर्श के क्षेत्र में ‘दलित विकासवाद ' की अवधारणा को स्‍थापित कर उनके सामाजिक,आर्थिक विकास का मार्ग भी प्रशस्‍त किया है। आपके सैकड़ों लेखों का प्रकाशन राष्‍ट्रीय एवं अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर की स्‍तरीय पत्रिकाओं में हो चुका है। आपमें प्रज्ञा एवम प्रतिभा का अदभुत सामंजस्‍य है। दलित विमर्श, स्‍त्री विमर्श, राष्‍ट्रभाषा हिन्‍दी एवम पर्यावरण में अनेक पुस्‍तकों की रचना कर चुके डाँ वीरेन्‍द्र ने विश्‍व की ज्‍वलंत समस्‍या पर्यावरण को शोधपरक ढंग से प्रस्‍तुत किया है। राष्‍ट्रभाषा महासंघ मुम्‍बई, राजमहल चौक कवर्धा द्वारा स्‍व0 श्री हरि ठाकुर स्‍मृति पुरस्‍कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव अम्‍बेडकर फेलोशिप सम्‍मान 2006, साहित्‍य वारिधि मानदोपाधि एवं निराला सम्‍मान 2008 सहित अनेक सम्‍मानों से उन्‍हें अलंकृत किया जा चुका है। वर्तमान में आप भारतीय उच्‍च शिक्षा अध्‍ययन संस्‍थान राष्‍ट्रपति निवास, शिमला (हि0प्र0) में नई आर्थिक नीति एवं दलितों के समक्ष चुनौतियाँ (2008-11) विषय पर तीन वर्ष के लिए एसोसियेट हैं।



सम्‍पर्क-वरिष्‍ठ प्रवक्‍ता, हिन्‍दी विभाग, डी0 वी0 (पी0जी0) कालेज उरई (जालौन) उ0प्र0-285001,भारत


इसे प्रकाशित किया Raviratlami ने, समय: 07:56 Share This! / इस रचना को ईमेल के जरिए दोस्तों को भेजें!

विषय: आलेख


1 टिप्पणियाँ.:
सतीश सक्सेना said...
बहुत अच्छा शोध परक लेख, अशिक्षा मुस्लिम समुदाय के पिछडेपन के लिए जिम्मेवार है ! इस समुदाय को प्रोत्साहन देना सरकार के साथ साथ हम सबकी सामूहिक जिम्मेवारी बनती है जिससे मुस्लिम समुदाय और प्रतिबद्धता के साथ मुख्य धारा से जुड़ कर रहे
आवश्यकता है की अलगाव वादी शक्तियों और नफरत के सौदागरों को बेनकाब किया जाए !
सादर

10:36 AM
June 30, 2009
वीरेन्‍द्र सिंह यादव का आलेख : शिक्षा में भारतीय मुसलमानों की दशा एवं दिशा




शिक्षा में भारतीय मुसलमानों की दशा एवं दिशा

डॉ0 वीरेन्‍द्र सिंह यादव



किसी भी सम्‍प्रदाय के विकास में शिक्षा की अहम भूमिका होती है क्‍योंकि शिक्षा व्‍यक्‍ति को सुसंस्‍कृत एवं सभ्‍य बनाकर एक सुन्‍दर, मनोहर आदर्श समाज का सृजन करती है। सच्‍ची शिक्षा व्‍यक्‍ति को निर्माण की प्रक्रिया की ओर प्रेरित कर उसमें व्‍यवहार के परिष्‍कार, दृष्‍टिकोण को तो विकसित करती ही है साथ ही व्‍यक्‍ति के चरित्र का निर्माण और व्‍यवहार का निरूपण भी करती है। शिक्षा संविधान, प्रतिष्‍ठान, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र के आदर्श मूल्‍यों की प्राप्‍ति में मार्ग दर्शन कर सहायता करती है। अर्थात्‌ बौद्धिक सम्‍पन्‍नता एवं राष्‍ट्रीय आत्‍म निर्भरता की जड़ शिक्षा है। शिक्षा वास्‍तविक मायनों में प्रवृत्‍ति और आन्‍तरिक शोध की प्रक्रिया में प्रत्‍यक्ष सुधार उत्‍पन्‍न करती है। शिक्षा मानव को अधिक तार्किक और उदार बनाती है और पढ़ा लिखा व्‍यक्‍ति अपनी धार्मिक पहचान के प्रति संकुचित दृष्‍टिकोण नहीं रखता। यदि व्‍यक्‍ति या समुदाय को उचित ढ़ंग से शिक्षित किया जाये तो प्रत्‍येक नागरिक एकता की क्षमता को विकसित करता है जिसका परिणाम एक शक्‍तिशाली राष्‍ट्र के रूप में सामने आता है। वास्‍तविकता यह है कि व्‍यक्‍ति और किसी भी समुदाय के चतुर्मुखी विकास के लिए शिक्षा एक अति महत्‍वपूर्ण घटक के रूप में कार्य करती है।

दुनिया का सबसे शक्‍तिशाली लोकतंत्र अपनी अनेक ख़ामियों के बावजूद विश्‍व में सदैव आकर्षण का केन्‍द्र रहा है, क्‍योंकि इसने (भारत) समाज के हाशिए पर पड़े समूहों समेत विभिन्‍न वर्गों वाली शक्‍तियों को जीवंत/संजीदा और मजबूत किया है। अंतर-लोकतंत्रीकरण (समाज में समान दर्जे की अनुभूति) एवं लोकतंत्रीकरण (सामाजिक और श्‍ौक्षिक स्थिति में सुधार) की इस प्रकिया ने दलितों, पिछड़ों एवं महिलाओं में नयी जान डाल दी है परन्‍तु इस प्रक्रिया नें भारतीय मुसलमानों को खास प्रभावित नहीं किया है क्‍योंकि मुस्‍लिम समुदाय के अंदर जितनी व्‍यापक सामाजिक और श्‍ौक्षिक सुधार की पहल होनी चाहिए वह नहीं हो पा रही है। भारतीय संविधान पर दृष्‍टि डालें तो यह धर्म-निरपेक्षता की स्‍पष्‍ट घोषणा करता है। अर्थात्‌ ऐसा राष्‍ट्र जिसका अपना कोई मजहब नहीं होता और वह किसी समुदाय के साथ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। भारतीय संविधान का अनुच्‍छेद 25 प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति को लोक व्‍यवस्‍था एवं स्‍वास्‍थ्‍य तथा नैतिकता के अधीन रहते हुए केवल ऐसा धर्म ग्रहण करने की स्‍वतंत्रता नहीं देता, बल्‍कि अपने विचारों का प्रचार व प्रसार करने के लिए अपने विश्‍वास को ऐसे बाहरी कार्यों में भी प्रदर्शित करने की स्‍वतंत्रता देता है। जैसा कि वह व्‍यक्‍ति उचित समझता है साथ ही उसके निर्णय एवं अन्‍तःकरण द्वारा अनुमोदित हो। धर्म की स्‍वतंत्रता पर राज्‍य द्वारा कतिपय पाबन्‍दी लगाने की व्‍यवस्‍था भी संविधान में है। भारतीय संविधान का अनुच्‍छेद-30 अल्‍पसंख्‍यक वर्गों को अपनी पसंद की श्‍ौक्षिक संस्‍थानों को स्‍थापित करने और प्रबन्‍ध करने का अधिकार देता है। यहाँ अल्‍पसंख्‍यक से तात्‍पर्य मुस्‍लिम, सिख, बौद्ध, ईसाई तथा फारसी समुदायों से है।

भारतीय मुसलमान शिक्षा में देश के अन्‍य समूहों से बहुत पीछे हैं यह एक स्‍थापित सत्‍य है। और इसके पीछे मुसलमानों का पिछड़ापन बताया जाता है यहाँ यक्ष प्रश्‍न यह है कि मुस्‍लिम समुदाय का आर्थिक रूप से पिछड़ापन होना, उनके श्‍ौक्षिक पिछड़े पन के लिए जिम्‍मेदार है या यूं कहा जाये कि शिक्षा में पीछे होने के कारण ही ये आर्थिक व सामाजिक रूप से पीछे रह जाते हैं। कुल मिलाकर मुस्‍लिम समुदाय की स्थिति भारत में श्‍ौक्षिक स्‍तर पर दयनीय है। मुस्‍लिम समुदाय की इस दशा को रेखांकित करने के लिए हमें कुछ वर्ष पीछे जाना पड़ेगा। देखा जाये तो वास्‍तव में देश विभाजन एवं देश की स्‍वाधीनता हमें दोनों एक साथ प्राप्‍त हुई। जहाँ एक ओर हम देश की स्‍वतंत्रता से प्रफुल्‍लित थे वहीं दूसरी तरफ हम देश के विभाजन से दुःखी भी थे। विश्‍ोषकर जिसमें मुस्‍लिम समुदाय को साम्‍प्रदायिक हिंसा का शिकार होना पड़ा। जिनके पास जो सम्‍पत्‍ति थी उसे या तो उनको वहीं छोड़ना पड़ा था और ऐसी स्थिति में पाकिस्‍तान भी जाना पड़ा। अर्थात्‌ अधिकतर मुस्‍लिम समुदाय के लोगों को शरणार्थी के रूप में यहाँ रहना पड़ा। स्‍वतंत्रता पश्‍चात मुसलमानों का लखनऊ में मौलाना अबुल कलाम आजाद की पहल पर एक अधिवेशन हुआ इसके द्वारा तय किया गया कि मुसलमान अपना कोई स्‍वतंत्र राजनीतिक दल नहीं बनायेंगे और इसमें उन्‍हें काफी हद तक सफलता भी मिली, लेकिन मुस्‍लिम समुदाय की यह समस्‍या बनी रही कि भारतीय राष्‍ट्रीयता से जुड़ जाने के बाद भी साम्‍प्रदायिक दंगो से परेशान रहे, मुस्‍लिम समुदाय की वह पीढ़ी, जो भारत में 1947 के आसपास पैदा हुई थी, छठवें दशक तक आते-आते युवा हो गयी तब भी ये राजनीति की धारा में अलग-थलग बनें रहे। प्रारम्‍भ में कांग्रेस का दामन थामने पर इस समुदाय की बहुत ठोस जगह मुकम्‍मल नहीं हो पायी। पाकिस्‍तान के साथ बढ़ती शत्रुता और युद्धों ने साम्‍प्रदायिकता को बढ़ावा दिया। कांग्रेस के पास मुद्दों का अभाव होने की वजह से उसने अपने वोट बैंक खिसकने की वजह से धर्म का सहारा लिया। वामपंथी एवं किसान, संगठन की मूलधारा से न जुड़ने से साम्‍प्रदायिकता को बल मिला। फलतः मुस्‍लिम समुदाय में जो सामाजिक, सांस्‍कृतिक, श्‍ौक्षिक विकास होना चाहिए था वह नहीं हो पाया और इसके परिणाम स्‍वरूप धर्मांध मुस्‍लिम नेताओं की एक नयी जमात तैयार हो गयी, क्‍योंकि जहाँ हिन्‍दुओं की शक्‍तियां एक होकर संस्‍थायें बना रही थीं (विश्‍व हिन्‍दू परिषद, बजरंग दल, शिवसेना, भाजपा), वहीं मुस्‍लिम समुदाय के भी धार्मिक संगठन बनाये जा रहे थे। साम्प्रदायिक घृणा की यह दीवार दिनों-दिन बढ़ती गयी फलतः श्‍ौक्षिक विकास जो इस वर्ग में होना चाहिए वह नहीं हो पाया। हालाँकि इसके लिए कुछ मुस्‍लिम भाई भारतीय समाज को दोषी ठहराते हैं कि हिन्‍दू समाज मुस्‍लिम समुदाय की अपेक्षा अधिक कट्टर है। परन्‍तु भारत एवं विश्‍व सहित अनेक शोध रिपोर्टों से यह साबित होता है कि ‘भारतीय समाज किसी भी देश के समाज से अधिक उन्‍नत समाज है इसलिए आप एक पिछड़े समाज की तुलना किसी उन्‍नत समाज से नहीं कर सकते और यह नहीं कह सकते कि पिछड़े समाज के मूल्‍य उन्‍नत समाज पर थोप दिये जायें।' लोगों के मस्‍तिष्‍क में चाहे जो पूर्वाग्रह हों परन्‍तु स्‍वतंत्रता के पश्‍चात भारत में मुस्‍लिम समुदाय को बहुत सी ऐसी स्‍वतंत्रताएं हासिल हैं। जो अन्‍य मुस्‍लिम देशों में उन्‍हें कहीं नहीं मिलती हैं। धर्मनिरपेक्ष, व्‍यवस्‍था चाहे कितनी ही दोषपूर्ण, लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था चाहे जितनी ही गैर प्रतिनिधिक हो, भारत के मुस्‍लिम समुदाय को जो खास सहूलियतें मिली हुई हैं, वे बहुत से मुसलमानों ,यहाँ तक कि इस्‍लामी राष्ट्रों को भी हासिल नहीं हैं, उदाहरण के लिए अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता, संगठन और राजनैतिक प्रक्रिया में हिस्‍सेदारी की स्‍वतंत्रता। हालांकि ऐतिहासिक कारणों से उन्‍हें साम्‍प्रदायिक पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है जो बराबर मुस्‍लिम समुदाय को तनाव/अवसाद में डालें रखता है और कभी-कभी इसका इतना विकराल/विस्‍फोटक रूप हो जाता है कि उसका वर्णन नहीं किया जाता है। वास्‍तविकता यह है कि मुसलमानों ने जिंदगी, सम्‍पत्‍ति और सम्‍मान की क्षति झेली है, कुछ त्रासदी पूर्व भयानक घटनाओं ने आम लोगों के मस्‍तिष्‍क पर बहुत गहरे घाव छोड़े हैं, पर इतना क्‍या कम है कि मुसलमान अपने अस्‍तित्व में बने रहे और बढ़ते रहे। कुल मिलाकर यह मुस्‍लिम समुदाय आजादी और क्षति के साथ जीता रहा, पर एक बात है जैसा न्‍याय, अधिकार एवं बराबरी एवं शिक्षा इस समुदाय को मिलनी चाहिए। वह मुसलमानों को आज भी मुकम्‍मल नहीं हो पायी हैं। इसलिए इनका श्‍ौक्षिक स्‍तर अधिक नहीं बढ़ पाया है।

भारतीय मुसलमानों का श्‍ौक्षिक स्‍तर कम होने का दूसरा पहलू इनका रहन-सहन का वातावरण भी है। भारतीय मुसलमानों का रहन-सहन अपनी विशिष्‍ट पहचान रखता है और इसी पहचान के लिए इस समुदाय का श्‍ौक्षिक वातावरण (तालीमी) भी अलग रहा है। इतिहास से हमें ज्ञात होता है कि मदरसों ने मुस्‍लिम समुदाय को साक्षरता के क्षेत्र में अति महत्‍वपूर्ण मुकाम पर पहुंचाया है। सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह है कि मदरसे उन क्षेत्रों में छात्रों को साक्षर बनाते हैं, जहाँ औपचारिक शिक्षण संस्‍थाएं नहीं हैं शायद इसके पीछे यह कारण भी महत्‍वपूर्ण हो सकता है कि इन क्षेत्रों के लोगों की आर्थिक स्‍थिति इतनी बेहतर नहीं है कि अच्‍छे स्‍कूलों में जाकर अध्‍ययन कर सकें इससे स्‍पष्‍ट है कि एक तो गरीबी में अधिक से अधिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार मदरसों ने किया साथ ही दूर -दराज तक साक्षरता का मिशन भी पूरा किया, परन्‍तु आज सैकड़ों साल पुरानी विशिष्‍ट मदरसा शिक्षा की भव्‍य इमारतों की शानदार (सुनहरी) यात्रा कर आये मदरसों को जहाँ एक खास विचारधारा के लोग आतंकवाद या धार्मिक उग्रवाद का उत्‍पादन केन्‍द्र घोषित कर रहे हैं इसके साथ ही एक धारणा यह भी जोड़ दी जाती है कि मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा बच्‍चों , किशोरों को धर्मांध, रूढ़िवादी , प्रचीनतावादी तथा आधुनिकता का विरोधी बनाने का काम करती है। इधर कुछ वर्षों में मदरसों के पाठ्‌यक्रम और शिक्षा पद्धति को लेकर भारत में बहुत सार्थक और उपयोगी काम हुए हैं। यहाँ पर कम्‍प्‍यूटर की शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी एवं व्‍यावसायिक शिक्षा भी दी जा रही है इसके लिए उ0 प्र0 सरकार के अरबी-फारसी परीक्षा बोर्ड ने मान्‍यता दे दी है।

मदरसा शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ वर्तमान में मुस्‍लिम नवजवान शिक्षा की सभी संस्‍थाओं में अपने आपको अध्‍ययन के लिए उत्‍सुक हैं। आज मुस्‍लिम समुदाय के समक्ष जीविकोपार्जन एक चुनौती के रूप में है इसके लिए इनके समक्ष अब नैतिकता बौनी हो गयी है अर्थात्‌ नैतिक शिक्षा का बल कम हो गया है। उ0 प्र0 में मकातबे इस्‍लामियाँ, शिक्षा को आधुनिकता का मोड़ देकर अति महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रही है। अर्थात्‌ स्‍पष्‍ट है कि भारत में अरबी के मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सेक्‍यूलर शिक्षा पर भी जोर (अनिवार्यता) दिया जा रहा है।

भारत में मुस्‍लिम समुदाय उच्‍च शिक्षा में उतना आगे नहीं है जितना होना चाहिए परन्‍तु इसके लिए भारत सरकार अपने स्‍तर से पूरी छूट दिये हुए है। अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय इस दिशा में एक महत्‍वपूर्ण काम कर रहा है और शिक्षा की जितनी आधुनिक प्रणालियाँ हैं वह सब यहाँ उपलब्‍ध हैं। सबसे अहम बात मुस्‍लिम समुदाय के लिए यह है कि इस वर्ग की महिलाएं शिक्षा एवं रोजगार के क्षेत्र में किसी भी वर्ग से बहुत पीछे हैं, फिलहाल कुछ भी हो आज स्‍कूली शिक्षा (मदरसा) के साथ-साथ मुस्‍लिम समुदाय को अपने नौनिहालों को माध्‍यमिक शिक्षा एवं उच्‍च शिक्षा को बढ़ाने की जरूरत है। सर सैय्‍यद अहमद साहब के अलीगढ़ मूवमेंट से लेकर अभी तक तमाम श्‍ौक्षिक सुधार अभियानों के पीछे (सच्‍चर समिति की रिपोर्ट को छोड़कर)बहुत सीमित मंशा काम करती रही है। इससे सबको शिक्षित करने का सवाल नहीं होता यह सामाजिक रूप से मौजूद बुराइयों को मजबूत करने वाला है और सिर्फ मुस्‍लिम कुलीन जमात की जरूरत को पूरा करने के ख्‍याल से चलाये जाते हैं। इसके लिए आज आवश्‍यकता है कि सरकार मुस्‍लिम समुदाय के लिए अन्‍य वर्गों की भाँति ( अनु0 जाति-अनु0 जनजाति/पिछड़े वर्ग) ठोस श्‍ौक्षिक नीति बनाएँ जिसमें मुस्‍लिमों के लिए शिक्षा पर विश्‍ोष बल दिये जाने की बात हो। जिससे प्राथमिक एवं माध्‍यमिक तथा उच्‍च शिक्षा के साथ-साथ व्‍यावसायिक शिक्षा के महत्‍व पर बल दिया जाये इसके साथ ही मुस्‍लिम बच्‍चों को विश्‍ोष रूप से ट्रेनिंग एवं कोचिंग की व्‍यवस्‍था पर भी जोर दिया जाये।

यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि मुस्‍लिम समुदाय के शिक्षा में पिछड़ने के पहलुओं पर पिछली एवम्‌ वर्तमान सरकार की गलत नीतियों के साथ-साथ मुस्‍लिम समुदाय की रूढ़ियां एवं आर्थिक पिछड़ापन भी कम दोषी नहीं हैं। आज वास्‍तविकता यह है कि मुस्‍लिम समुदाय इनके भंवर जाल के रूप में फंस गया है जिससे वह आज तक नहीं निकल पाया है फिलहाल आज के इस गलाकाट प्रतिस्‍पर्धा वाले युग में मुसलमान अपने को कितना आगे (श्‍ौक्षिक स्‍तर पर) ले जायेंगे यह भविष्‍य के गर्भ में छिपा हुआ है?

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श्‍ौक्षणिक गतिविधियों से जुड़े युवा साहित्‍यकार डाँ वीरेन्‍द्रसिंह यादव ने साहित्‍यिक, सांस्‍कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा पर्यावर्णीय समस्‍याओं से सम्‍बन्‍धित गतिविधियों को केन्‍द्र में रखकर अपना सृजन किया है। इसके साथ ही आपने दलित विमर्श के क्षेत्र में ‘दलित विकासवाद ' की अवधारणा को स्‍थापित कर उनके सामाजिक,आर्थिक विकास का मार्ग भी प्रशस्‍त किया है। आपके सैकड़ों लेखों का प्रकाशन राष्‍ट्रीय एवं अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर की स्‍तरीय पत्रिकाओं में हो चुका है। आपमें प्रज्ञा एवम प्रतिभा का अदभुत सामंजस्‍य है। दलित विमर्श, स्‍त्री विमर्श, राष्‍ट्रभाषा हिन्‍दी एवम पर्यावरण में अनेक पुस्‍तकों की रचना कर चुके डाँ वीरेन्‍द्र ने विश्‍व की ज्‍वलंत समस्‍या पर्यावरण को शोधपरक ढंग से प्रस्‍तुत किया है। राष्‍ट्रभाषा महासंघ मुम्‍बई, राजमहल चौक कवर्धा द्वारा स्‍व0 श्री हरि ठाकुर स्‍मृति पुरस्‍कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव अम्‍बेडकर फेलोशिप सम्‍मान 2006, साहित्‍य वारिधि मानदोपाधि एवं निराला सम्‍मान 2008 सहित अनेक सम्‍मानों से उन्‍हें अलंकृत किया जा चुका है। वर्तमान में आप भारतीय उच्‍च शिक्षा अध्‍ययन संस्‍थान राष्‍ट्रपति निवास, शिमला (हि0प्र0) में नई आर्थिक नीति एवं दलितों के समक्ष चुनौतियाँ (2008-11) विषय पर तीन वर्ष के लिए एसोसियेट हैं।



सम्‍पर्क-वरिष्‍ठ प्रवक्‍ता, हिन्‍दी विभाग, डी0 वी0 (पी0जी0) कालेज उरई (जालौन) उ0प्र0-285001,भारत


इसे प्रकाशित किया Raviratlami ने, समय: 07:56 Share This! / इस रचना को ईमेल के जरिए दोस्तों को भेजें!

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1 टिप्पणियाँ.:
सतीश सक्सेना said...
बहुत अच्छा शोध परक लेख, अशिक्षा मुस्लिम समुदाय के पिछडेपन के लिए जिम्मेवार है ! इस समुदाय को प्रोत्साहन देना सरकार के साथ साथ हम सबकी सामूहिक जिम्मेवारी बनती है जिससे मुस्लिम समुदाय और प्रतिबद्धता के साथ मुख्य धारा से जुड़ कर रहे
आवश्यकता है की अलगाव वादी शक्तियों और नफरत के सौदागरों को बेनकाब किया जाए !
सादर

10:36 AM

1 comment:

  1. आपका प्रयास हमेशा ही सराहनीय रहा है. Bahut Achchaa Likha Hai.

    जारी रहें.
    अमित के सागर

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